अपनेपन का क्रम व्युतक्रम है….

टुकड़ा टुकड़ा टूटा हूं,

जर्रा जर्रा बिखरा हूं,

अश्क झरते हैं आंखों से,

मनको समझाता रहता हूं,

नींद से रिश्ता खत्म हुआ,

अगिनत रातों से जागा हूं,

समझा जिनको अपना था,

उनसे ही बेजार हुआ,

नादान था ये दिल बहुत,

जाने क्यूं उन्हीं से प्यार हुआ,

आंसू उनकी आंखें में थे,

बोल थे झूठे, लब पर,

सोचा था मैने, तुम्हे यकीं है,

सबसे ज्यादा मुझ पर,

लगा था तुम मुझसे बतलाओगे,

अपना ज़ख्म दिखलाओगे,

अपने बहते आंसू,

मेरे कांधे पर सुखाओगे,

शायद ये मेरा भ्रम है,

आज की इस दुनियां में,

अपनेपन का क्रम, ‘बेतौल‘ व्युतक्रम है।

लेखक - अतुल पाण्डेय (बेतौल)
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