अपनों की जमात में

अपनों की जमात में, आइना ढूंढ रहा था,

मुझे खुद को देखना था,

तुम्हारी आंखों में झांकना, मजबूरी थी मेरी।

आंधियां यादों की जोर हैं, सहारा चाहता था,

मुझे खुद को बचाना था,

तेरा हाथ थामना, मजबूरी थी मेरी।

तेरी नाराजगी के ताप से, झुलस रहा था मैं,

मुझे खुद को ठंडा करना था,

तुझे बाहों में भर लेना, मजबूरी थी मेरी।

जिंदगी की भाग दौड़ से, थक गया था मैं,

मुझे खुद को सुलाना था,

तेरी गोद में सर रखना, मजबूरी थी मेरी।

दुनियां के शोर में, शांति तलाश रहा हूं,

मुझे सुकून से मरना है,

तुझसे प्यार ‘बेतौल’ करना, मजबूरी थी मेरी।

लेखक - अतुल पाण्डेय (बेतौल)
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