अशोक चक्र विजेता “नर बहादुर थापा”
5 बटालियन 5 रेजीमेंट, गुरखा सेना भरती, नौजवानो टोली, नहीं किसी से डरती।
कठिन समय टोली करे काम, दावक में कूद पड़ते, ले देश का नाम।।१
स्वतंत्र भारत छोटे राज्य विलय, एक राष्ट्र हिंदी भाषा, एक ही निलय।
राष्ट्र था सबल बनाना, बहुत जगह था टूटा, सदियों काबिज रहे विदेशी, दोनो हाथों लूटा।।२
सेना पुलिस कारवाई एक साथ, राष्ट्रध्वज तिरंगा थामें हाथ।
नासमझ विरोधियों के कुचले सर, मतवाले कुछ बावले उग्र हुए पर।।३
रात अंधेरी, तड़तड़ चलती गोली, हैदराबादी साम्राज्य, दुश्मन बोले बोली।
छिपा वारि एक ओर, तुंगगभद्रारेल पुल बायां छोर।।४
वारि ब्रेनगन उगले, गोली की बौछार, पड़े शिथिल, पुलिस के सब औजार।
आगे बढ़ सेना, थाम ली कमान, एक टुकड़ी बढ़ी, मिटाने शत्रु निशान।।५
दुश्मन छिपा ठौर, जिसने भांपा, सेना का युवा वीर, एक गुरखा “थापा”।
सौ गज मैदान कुछ पल में नापा, चली “बहादुर” खुखरी, दुश्मन थर थर कांपा।।६
रिपु दल मचा क्रंदन चीत्कार, खुखरी करती प्रहार पर प्रहार।
छिपा दुश्मन काट, बहा रक्त चहुं ओर, सेना को सौंपा पोस्ट, शत्रु हुआ कमजोर।।७
मौत उसे छू न पाई, था मां भारती का वर, रिपु दल अकेला काटने, जा भिड़ा वो “नर”।
धुन उसे रिपु खुखरी से काटना, देह भले टुकड़े हो, देश नहीं बांटना।।८
पोस्ट हवाले कर राष्ट्र को, हृदय हुआ निहाल, चिंता खुद की न रही, घायल पड़ा बेहाल।
मां भारती के लाल पर, राष्ट्र करे फक्र, शोभित उस पर हुआ, वीरता का सर्वोच्च पदक “अशोक चक्र”।।९
परवाह न दुश्मन की, डरा सके न गोली,
वीर सपूतों से लबरेज, भारत मां की झोली।
गोलियों बौछारों में, कदम न कांपा था,
अशोक चक्र विजेता, “नायक नर बहादुर थापा” था।।१०
लेखक - अतुल पाण्डेय (बेतौल)