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एक तुम्हारी याद

एक तुम्हारी याद है,

भीड़ हो या तन्हाई,

साथ छोड़

जाती नहीं,

और,

एक तुम हो,

दीं जिसे

लाख दुहाई,

साथ मेरे

आती नहीं!

दिल में लगी है

जो आग,

रोज उससे

रोशन करते है,

अपने कमरे

के चिराग,

मुश्किलों से

ज़ज़्ब करते हैं,

थरथराते होठों

के राग,

‘बेतौल’, दिल की टीस,

अब दबाए दबती नहीं!!

लेखक - अतुल पाण्डेय (बेतौल)
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