ओ खुशी,ऐ खुशी
कई दिनों बाद कल,
दिखी थी खुशी चंचल,
मासूम सी निश्चल,
झलक दिखा, हंसी बिखरा,
चली गई, रुकी बस कुछ पल,
थी वो जिम्मेदारियों से विव्हल,
कुछ धागे चिंता के दिखे थे तेरी भोली चितवन में,
तू तो चली गई फिर मुस्कुरा कर, वो धागे उलझ गए मन में,
जहां जाती, जिम्मेदारियां निभाती,
कहीं हंसी, कहीं मुस्कान बिखराती,
तुम क्यों एक जगह न ठहर पाती,
खुद के गम को पीती,
खुद ही खुद को समझाती,
कभी न पीड़ा अपनी झलकाती,
चलती जाती, छोटी होती कभी बड़ी बन जाती,
टुकड़े टुकड़े बंटती जाती,
सब चाहें अपने मन की,
कोई न पूछे उसके मन की,
झेल रही क्या संत्रास,
पूछे न कोई उसके हिय की प्यास,
कहां चोट है, किसने तोड़ा उसका विश्वास,
ओ खुशी !
तू भर ले स्वांस,
जब आएगी मेरे पास,
तेरे सपने सजा देंगे,
ऐ खुशी,
तुझे भी जीना सिखा देंगे,
मुस्कुराई नही है,
तू भी तो एक वक्त से,
तेरे होंठों पे,
अपनी मुस्कान सजा देंगे।
अभी तक तूने,
औरों के गम हैं पिए,
अब तो खुलकर कुछ पल,
जी ले ‘बेतौल’ खुद केलिए।
ओ खुशी, ऐ खुशी
कई दिनों बाद कल,
दिखी थी खुशी चंचल,
मासूम सी निश्चल,
झलक दिखा, हंसी बिखरा,
चली गई, रुकी बस कुछ पल,
थी वो जिम्मेदारियों से विव्हल,
कुछ धागे चिंता के दिखे थे,
तेरी भोली चितवन में,
तू तो चली गई मुंह फिरा कर,
वो धागे उलझ गए मन में,
जहां जाती,
जिम्मेदारियां निभाती,
कहीं हंसी,
कहीं मुस्कान बिखराती,
तुम क्यों एक जगह,
न ठहर पाती,
खुद के गम को पीती,
खुद ही खुद को समझाती,
कभी न पीड़ा अपनी झलकाती,
चलती जाती,
कभी छोटी होती,
कभी बड़ी बन जाती,
टुकड़े टुकड़े बंटती जाती,
सब चाहें,
अपने मन की,
कोई न पूछे,
उसके मन की,
झेल रही क्या संत्रास,
पूछे न कोई,
उसके हिय की प्यास,
कहां चोट है,
किसने तोड़ा उसका विश्वास,
ओ खुशी !
तू भर ले स्वांस,
जब आएगी मेरे पास,
तेरी आंखों के सपने खिला देंगे,
ए हंसी,
तुझे भी जीना सीखा देंगे,
मुस्कुराई नही है,
तू भी तो एक वक्त से,
तेरे होंठों पे,
अपनी मुस्कान सजा देंगे,
अभी तक तूने,
औरों के गम हैं पिए,
अब तो खुलकर कुछ पल,
जी ले ‘बेतौल’ खुद के लिए।
लेखक - अतुल पाण्डेय (बेतौल)