आप जो, गुलाबी गुलाबी हो रहे हैं,
जान लो, हम शराबी हो रहे हैं,
तुम्हारे नैनों की, मस्ती को पी रहे हैं,
मान लो, इस लिए ही हम जी रहे हैं,
पिला तो दी तुमने, अपनी अंखियों से,
जिक्र न करना कभी कहीं, न कहना अपनी सखियों से,
धरा हिल रही मेरी, और अंबर मेरा डोल रहा,
गुलाबी रंगत और, इन नैनों का नशा,
सर चढ़कर है बोल रहा,
संभाल लेना मुझे, अगर, लड़खड़ा जाऊं कभी,
तुम्हारे नैनो से तो, पी ली आज,
तुम्हारे अधरों का विष बचा हैं अभी,
गिर जाऊं अगर, अपनी गोद में सर मेरा रख लेना,
अपने आंचल से हवा करना, अपने गेसुओं से मेरे चेहरे को छांव देना,
दम घुट रहा हो तो, अपनी सांस मेरी सांसों से मिला देना,
मर भी गया तब, तो, फिर न अरमान ‘बेतौल‘ कोई बाकी होगा,
मुझ से मयकश को अंतिम प्याला, पिलाने वाला तुझ सा साकी होगा।
लेखक - अतुल पाण्डेय (बेतौल)