दामन भी तो नहीं फैलाया है

हम तो, कदम दर कदम तेरी तरफ बढ़ते रहे,

वक्त तो बेमुर्रवत था मेरा, तुम भी नई दूरियां गढ़ते रहे,

आंखें तुम्हारी बयां करती हैं कि, तुम्हारे दिल में एक कोना कहीं मैने पाया है,

पर, दरम्यान था जो फासला, अभी तक मिट न पाया है,

यूं तो,ख्वाहिश – ए – मोहब्बत मेरे चेहरे पे ही नुमाया है,

मगर, आदत नहीं है ‘बेतौल’ मुझे,

अब तलक किसी के सामने कभी मैने, दामन भी तो नहीं फैलाया है।

लेखक - अतुल पाण्डेय (बेतौल)
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