चले तो गए हो महफिल से यूं रूठ कर, जेहन में पर तेरा वो अक्श तारी है,
तुम्हारे आंखों की वो गर्मी, तुम्हारे गालों की वो सुर्खी, मेरी जान पे भारी है,
खुशबू जो फैली थी तेरे आने के बाद, अब तक नशा है मेरी आंखों में, जेहन में चढ़ी उसी की खुमारी है,
डस गई है दिल को मेरे, नागिन थी कोई या, चेहरे पे गिरती, वो लट तुम्हारी है,
लौट आओगे तुम मेरे ही लिए, बस एक बार तो कह दीजिए, रुक जाऊंगा यहीं कहीं,
क्यूंकि, तुम्हें देख देख जीना, अब तो आदत हमारी है,
लंबा है सफर और तेरी यादों की ‘बेतौल‘, बरसात भी जारी है।
लेखक - अतुल पाण्डेय (बेतौल)