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बेमुरव्वत से तुम क्यूं हो जाते हो

बेमुरव्वत से तुम क्यूं हो जाते हो, क्यूं मुझे इतना सताते हो,

कल चांद पूर्णमासी का, था बादलों की ओट में ऐसे, जैसे तुम लजाते हो,

बिखरी थी चांदनी फलक पर यूं, ज्यों तुम मुस्कुराते हो,

हवा भी मदमस्त थी ‘बेतौल’ ऐसे, आंचल जैसे तुम लहराते हो,

सोता हूं बड़ी मुश्किलों के बाद, ख्वाबों में आकर फिर क्यूं मुझे जगाते हो ?

बेमुरव्वत से तुम क्यूं हो जाते हो, क्यूं मुझे इतना सताते हो|

लेखक - अतुल पाण्डेय (बेतौल)
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