तुम्हारे आनन की, खुशियों को निरखते हैं,
इन मीन सी आंखों में, डूबने को उतरते हैं,
नथ तेरी चमकती जैसे, अमावस में सितारे दमकते हैं,
प्रतीक्षाइन अधरों के खिलने की, इन्हीं से तो पुष्प झरते हैं,
मुरझाते नहीं यादों के फूल, इनसे ही हम सारा दिन महकते हैं,
बहती हैं हवाजो तुम्हारी दिशा से, उनमे तुम्हारा हाल पढ़ते हैं,
आकृतियां उभरती हैं दिल में, जिन्हें हम शब्द कहते हैं,
पिरोते हैं एक लय में, लोग जिसे गीत कहते हैं,
गाए गीत तुम्हें महसूस करके, न जाने क्यों ये नयन बहते हैं,
मिलता है मन तुम्हीं से तो क्या करें ? “बेतौल” मीनू को ही मीत कहते हैं।
लेखक - अतुल पाण्डेय (बेतौल)