तुम सुंदर धरा,
मैं बादल आवारा सा,
तुम आकर्षक लहलहाती सी,
मैं मतवाला बंजारा सा,
तुम परिपूर्ण विविधता से हो,
मैं एकसार कजरारा सा,
तुम श्रंगार हो दुल्हन का,
मैं एक मन कुंवारा सा।
सूर्य ताप से तुम तपती हो,
मैं बीच में जा अड़ जाता हूं,
गर्मी सूरज क्यों छोड़ रहा,
ये सोच उससे लड़ जाता हूं,
तुम झुलस सी जाती हो,
मैं स्नेह फुहार हो जाता हूं,
तुम्हारी खुशियों की खातिर,
मैं प्रेम की बारिश बन जाता हूं।
नयन तुम्हारे जब नम हों,
मिलूंगा मैं सहारा सा,
मिलन हमारा, हो न सकेगा,
मिले हैं कहीं क्या, भू अंबर,
अगले जनम तुम नदी बनो,
मिलूंगा मैं तुम्हें किनारा सा।
लेखक - अतुल पाण्डेय (बेतौल)