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वक्त आज, ठहरा तो है

हम तो दूर हैं, अपने शहर, घर और अपनों से,

हैं अनजान शहर में एक अजनबी से,

क्या बयां करें शिकवा, क्यूं गिला हो इस जमीं से,

वक्त आज, ठहरा तो है ‘बेतौल’,

पर, बदलेगा जरूर, क्या किसी ने,

रुकता हुआ, देखा है किसी से ?

लेखक - अतुल पाण्डेय (बेतौल)
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