सजे खिलौने दुकानों में

सजे खिलौने दुकानों में, देख के मन बहुत हर्षाता था,

हसरत होती थी लेने की, जी भी तो ललचाता था,

घर पर रखी गुल्लक के पैसों से, उनमें से कोई नहीं आ पाता था,

वो मात-पिता से मांग सका न, मन ही मन मुरझाता था,

गया कभी जो घर किसी के, न निगाह खिलौनों से मिलाता था|

लेखक - अतुल पाण्डेय (बेतौल)
Share with your loved ones.

Leave a Comment