सांवरिया तेरे इंतजार में

पूर्णमासी सी उन्मुक्त तो, कभी दूज सी झलक, आखिर तुम क्या हो ? चांद !

उजले उजले से लगे तो, कभी जुगनू सी एक पल की चमक, आखिर तुम क्या हो ? रोशनी !

हिलोरें मारता सागर तो, कभी शांत नदी का फलक, आखिर तुम कैसे हो ? शीतल !

खिलखिलाती हँसी तो, कभी एक पल की मुस्कान, आखिर तुम क्या हो ? खुशी !

‘चांद‘ की ‘रोशनी’ में ‘शीतल’ होता मन ‘खुशी’ तलाश रहा, समेंट लूं हथेलियों में तुम्हे, “बेतौल” राह रहा निहार, सांवरिया करूं मैं कितना इंतजार ।

लेखक - अतुल पाण्डेय (बेतौल)
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