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इक किताब सा है चेहरा तेरा

इक किताब सा है चेहरा तेरा, आवरण में लगाई मुस्कुराहट, नाम खुशी तुमने इसका धरा, आंखों से रंग भी खूब भरा,

इसकी प्रस्तावना में तुमने, समेंटे अहसास खुशियों वाले पल के, भीतर कहानियों गीतों में भी, लिखे शब्द हल्के फुल्के, पढ़कर जिन्हें, अहसास न हों मन की हलचल के,

आवरण देखे कोई गर, पढ़ भी ले थोड़ा बहुत भी अगर, न जान पाएगा, तुम्हारे जीवन का समर।

लेकिन,

आखिरी पन्ने पर हैं कुछ अक्षर, हूबहू तेरे हस्ताक्षर, कह रहे हैं कुछ चीख चीख कर,

कह रहे तुम्हारे संघर्षों की कथा, मन की व्यथा,

मिला जिसे बनावटी रिश्तों का घर द्वार, मिला ताकत विहीन अधिकार, रहा सिसकता जिम्मेदारियों तले जिसका संसार,

दिख रहे हैं, सूखे आंसुओं की धार, एक तपड़ता हृदय, जिसे न मिला कभी प्यार, सूखता मुरझाता मन, जिस पर पड़ी न कभी, शीतल अपनत्व की फुहार,

छिपाए बरबस, न बताए कभी तुमने जो अपनी जबानी, कांपते हुए हाथों से किए तुम्हारे हस्ताक्षर, कह गए ‘बेतौल’ तुम्हारी सारी कहानी।

लेखक - अतुल पाण्डेय (बेतौल)
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