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तुम हो संपूर्ण

तुम हो संपूर्ण

(नायिका का वर्णन)

कभी नैनों में कजरा,

कभी बालों में गजरा,

कभी अधरो पे लाली,

कभी कानों में बाली,

कभी लहराए लट बालों की,

कभी मोहे सुर्खी गालों की,

कभी गुलाबी नैन ज्यों, तजे निंदिया,

कभी चमकारे यों, माथे की बिंदिया,

कभी गले में माला,

कभी होठों पे मदभरी हाला,

कभी चूड़ी की खुनखुन,

कभी पायल की रुनझुन,

कभी बेंदी की दमकन,

कभी बजती वो करधन,

कभी कमर की लचकन,

कभी सीने की धड़कन,

कभी महकती ज्यों, मधुवन,

कभी सुवासित, बदन चंदन,

नागिन सी लहराती ये वेणी,

साड़ी में लिपटी, नारी की श्रेणी,

कभी सकुचाती शर्माती हो,

कभी धवल दंत खिलखिलाती हो,

कभी आंगन बीच थिरकती हो,

कभी ओट में जा छिप जाती हो,

स्नेह लुटाती, प्रेम बरसाती, हिय हर्षाती, मिलन की प्यास बढ़ाती हो,

क्यों उदास हो, क्यूं अधूरी ही लौट जाती हो ?

तुम हर रोज रचती नए विचार, तुम भी भीगी हो प्रेम-धार।

(नायक का निवेदन)

तुम्हारी आंखों का मौन निमंत्रण, व्यक्त करे कुछ उद्गार,

तुम्हारा ये प्रेम, ये स्नेह, ये चाहत, ये श्रंगार,

तुम्हारी आंखों, अधरों के मौन निमंत्रण, हृदय के अव्यक्त उद्गार,

हैं तुम्हारे अपूर्ण होने की निशानी,

तुम गढ़ना चाहो एक नई कहानी,

चाहो तुम भी, होना संपूर्ण चहुं ओर,

क्यूं भिगोती, हो विवश, नैनों का कजरारा कोर?

इक रोज आओ, अपनी सभी मोहिनी कलाओं से युक्त,

करो सभी श्रंगार, हो झंझावातों से मुक्त,

खोल सारे तटबंध, तिनका तिनका, शनै: शनै: बिखरना,

उठने देना लहरों को, संग उनके ही बहना,

मंद, मद्धमया आवेग में, इच्छित गति से या भूचाल से वेग में,

देख आइना मेरी आखों में, निहार खुद को, खोज खुद में, कहां रही अपूर्ण,

कर साहस, कर ले खुद को परिपूर्ण, मेरी चुटकी में है रक्तचूर्ण,

सजा दूं तेरी मांग में, तुम हो जाओ संपूर्ण। तुम हो जाओ संपूर्ण।

लेखक - अतुल पाण्डेय (बेतौल)
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