Site icon Generic Gyan

श्मशान की पुकार

क्यों करता व्यर्थ लालसा, सोच, वास्तव में क्या तुझको पाना है,

क्यों करता व्यर्थ लालच में भाग दौड़, सोच, वास्तव में कहां तुझे जाना है,

जो तेरा है, क्यों उससे संतोष नहीं, जो पास नहीं, तुझे वही क्यों पाना है,

ईर्ष्या तेरे मन बसी, कलुष और तम उसका नजराना है,

देख दूसरे की खुशियां, उदास रहते तो, दुःख का तेरे हृदय में ठिकाना है,

जेबें मोटी, मन खाली, लालसा, लालच, ईर्ष्या, तम और कलुष से सजी तेरी थाली, यही नैवेद्य तेरा, यही तेरा खाना है,

चाहे जितने प्रयास करो, पास नहीं कुछ रह पाना है, माटी का पुतला तू, अंत में माटी में ही मिल जाना है।

लेखक - अतुल पाण्डेय (बेतौल)
Share with your loved ones.
Exit mobile version