कुछ ऐसे गुजरा सावन
तन माटी का, जला धूप में, हो बिरहन, न छांव कहीं, कुछ ऐसे गुजरा सावन, जलते रहे दिन, उमस भरी रातें गईं यादों में, आज आई सांवरी बदरी बरसी भादों में, ए सांवरिया, तेरी झलक ही हिय हर्षाए, कुछ बूंदें तेरी पाते ही, तपती सूखी माटी से सोंधी खुशबू आए, … Read more